रुद्र : भाग-१५
दोपहर के साढ़े बारह बज रहे थे। रुद्र इस समय अभय और विराज के साथ गाड़ी में बैठकर कहीं जा रहा। रुद्र गाड़ी चला रहा था और अभय उसकी बगल वाली सीट पर बैठा हुआ था। विराज पीछे बैठा था।
"यार तुझे क्या लगता है? ये आर्या ने ऐसा क्यों किया?" अभय ने रुद्र की ओर देखते हुए कहा।
"यही बात तो मेरी भी समझ में नहीं आ रही है। और राणा के हिसाब से आर्या ने उसे बस दो दिन पहले ही मेरा पीछा करने का काम दिया था।" रुद्र ने कहा।
"हो सकता है वो ये सब शेरा की वजह से कर रहा हो?" विराज ने अपना मत रखते हुए कहा।
"हो सकता है.....लेकिन....उसने इतने दिनों तक इंतजार क्यों किया तब?" रुद्र ने अपनी शंका स्पष्ट की।
"तो हो सकता है उस अपहरण और मानव अंगों की तस्करी वाला केस उससे जुड़ा हो?" अभय ने कुछ सोचते हुए कहा।
"इस बात की भी संभावना कम है, लेकिन इस बारे में तो अभी पता चल ही जाएगा। इसी का पता लगाने तो जा रहे हैं रघु से मिलने।" रुद्र ने गाड़ी की स्पीड बढ़ाते हुए कहा।
कुछ देर बाद रुद्र ने गाड़ी जेल के सामने रोकी। अंदर सुब-इंस्पेक्टर विजय, अपने टेबल पर बैठा कोई फाइल पढ़ रहा था। उसने रुद्र, अभय और विराज को आते देख उन्हें सल्यूट किया। पास ही खड़े तीन हवलदारों ने भी उन्हें सलामी दी। विजय रुद्र के पास आया और कहा, "सर आप यहाँ?"
"हाँ। देखने आए हैं कि रघु ने अपना मुँह खोला या नहीं।" रुद्र ने गंभीर स्वर में कहा।
"नहीं सर। हमने बहुत कोशिश की लेकिन उसने कुछ नहीं बताया।" विजय ने निराश होकर कहा।
"हम्म। चलो उसके पास।" रुद्र ने आगे की ओर इशारा करते हुए कहा।
विजय उन्हें रघु के लॉकअप तक ले गया। अभय, विराज और रुद्र सीधा लॉकअप के अंदर गए। रघु वहीं बैठा हुआ था। उसे देखकर साफ पता चल रहा था कि सच उगलवाने के लिए पुलिस वालों ने कितनी मेहनत की थी। माथे पर एक हल्की सी चोट का निशान भी था। कपड़े भी जगह-जगह से गंदे हो चुके थे। रुद्र, अभय और विराज रघु के इर्दगिर्द खड़े थे। विजय भी अंदर आया और दरवाजे को बंद कर दिया।
"आइए एसीपी साहब, आइए। आपके ये चमचे कुछ ना उखाड़ पाए तो अब आप आएँ हैं पूछताछ करने?....हा हा हा हा.....।" रघु ने हँसते हुए कहा।
"देख रघु, सच बता दे इसी में तेरी भलाई है।" अभय में थोड़ा गुस्से से कहा।
"मेरी चिंता तुम मत करो इंस्पेक्टर। तुम सब तो अब अपनी चिंता करो, ज्यादा देर नहीं बचोगे अब। तुम सब तो......" इससे पहले कि रघु और कुछ कहता, रुद्र ने उसे एक झन्नाटेदार थप्पड़ मार दिया।
रघु बैठे-बैठे सीधा जमीन पर लेट गया। उसने रुद्र की ओर मुस्कुराते हुए देखकर कहा, "जितना मारना है मार ले एसीपी, मैं कुछ नहीं बताऊँगा। ज्यादा से ज्यादा क्या करोगे, हाथ के बदले डंडे से मरोगे ना? वप कोशिश भी कर लो। इससे ज्यादा औकात नहीं तुम पुलिसवालों की।"
अब एक बार फिर रुद्र का गुस्सा अपने चरम पर जाने वाला था, मगर उसने बड़ी मुश्किल से उसे काबू में किया और रघु की ओर देखते हुए कहा, "तो तू पक्का कुछ नहीं बताएगा?"
"बिल्कुल भी नहीं एसीपी।" रघु बेशर्मी से मुस्कुराते हुए बोला।
"ठीक है। अभय, जल्दी से डॉक्टर शुक्ला को बुला, एम्बुलेंस के साथ।" रुद्र ने कहा।
"डॉक्टर शुक्ला को? क्यों?" विराज ने हैरान हो कर कहा। अभय और विजय भी रुद्र की मंशा समझने की कोशिश कर रहे थे।
"अब ये रघु तो कुछ बताएगा नहीं। हमने इसे मार-पीट कर भी देख ही लिया है। अगर इसने सच बता दिया होता तो इसे सजा कोर्ट देता। लेकिन जब तब ये सच नहीं बताएगा, तब तक हमें ही कोशिश करनी है सच उगलवाने की। और ये तो कुछ नहीं बोलेगा। है ना?" रुद्र ने एक बार फिर रघु को देखते हुए कहा।
"हाँ....।" रघु ने कहा, मगर इस बार उसके चेहरे पर मुस्कान नहीं थी।
"अब अगर हम इसे और मारेंगे ,तो ये तो मरेगा ही, साथ ही हम भी थक जाएँगे। तो क्यों ना इससे थोड़ी समाजसेवा करवा लें? हैं?।" रुद्र ने रघु को गौर से ऊपर से लेकर नीचे तक देखते हुए कहा।
"कैसी समाजसेवा सर?" विजय ने उत्सुकता से पूछा।
"देखो विजय, इसने तो न जाने कितने लोगों के ऑर्गन्स बेच दिए। तो अब हम भी कुछ ऐसा ही करेंगे, लेकिन लोगों की मुफ्त में मदद होगी।" रुद्र ने मुस्कुराते हुए कहा।
"मैं अभी भी कुछ नहीं समझा। थोड़ा क्लियर बता यार!" अभय थोड़ा चिढ़कर बोला।
"देख भाई। हम उन लोगों की लिस्ट निकालेंगे जिन्हें इस वक्त किडनी की सख्त जरूरत है। फिर उनमें से किसी एक को, जो ज्यादा बीमार हो, उसे इसकी किडनी दे देंगे।" रुद्र ने एकदम आराम से कहा।
"पागल हो गया है क्या रे एसीपी? तू....." रघु की बात पूरी होने से पहले इस बार अभय ने उसे थप्पड़ जड़ दिया। रघु थोड़ा सकपका कर चुप हो गया।
"जब बड़े बात करें तो चूहे चूं-चूं नहीं करते।" अभय ने रघु के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा।
"वैसे आईडिया अच्छा है। बाद में धीरे-धीरे इसका दिल, दिमाग, फेफड़ा....सब दान कर देंगे।" विराज ने कहा।
"अरे! खाल भी दान कर देंगे भाई। क्यों रघु?" कहते हुए रुद्र रघु के पास जाकर बैठ गया।
रुद्र ने अपनी जेब से एक पेन निकाली और उसे रघु के हाथ की उँगलियों के बीच रखा। रघु कुछ समझ पाता इसके पहले रुद्र ने उसकी उँगलियों को जोर से दबा दिया।
"आह........." रघु की चीख गूँज उठी।
"छोड़ो! बहुत दर्द हो रहा है....!" रघु गिड़गिड़ाते हुए बोला।
"ऐसे कैसे छोड़ दूँ रघु भाई? माना कि आप कुछ नहीं बताएँगे। लेकिन मुझे भी तो विजय की तरह आपकी सेवा का एक अवसर मिलना चाहिए। उसके बाद तो आप जरूरतमंदों में बाँट दिए जाओगे।" रुद्र थोड़ा भावुक होने का नाटक करते हुए बोला।
"अरे!.....कौन गधा कहता है मैं कुछ नहीं बताउँगा? मैं तो बस थोड़ा....आह....थोड़ा मजाक कर रहा था।....आह....एक बार छोड़ दो। सब बताता हूँ।" रघु ने लगभग रोते हुए कहा।
अभय और विराज मुस्कुरा रहे थे। विजय रुद्र से काफी प्रभावित लग रहा था।
"जल्दी बताओ।" रुद्र ने रघु के हाथ पर अपनी पकड़ ढीली करते हुए कहा।
"आह.....बहुत दर्द हो रहा है।" रघु ने उसी रुआंसी आवाज में कहा।
"अब ये रोना धोना बंद करो। और बताओ तुम्हारा बॉस कौन है?" विराज ने सख्त लहजे में कहा।
"वो...."
"ये-वो... नहीं। विराज ने सीधा-सवाल पूछा है। उसका उतना ही सीधा जवाब दो।" अभय ने रघु को डपटते हुए कहा।
"अ...... अधिराज नाम है बॉस का....!" रघु ने कहा।
"के अधिराज कौन है?" रुद्र ने पूछा।
"म....मुझे सिर्फ उनका नाम पता है। मैंने उनसे बस फोन पर बात की है, क.....कभी देखा नहीं उन्हें।" रघु ने थोड़ा हकलाते हुए कहा।
"इसके फोन में से कोई नंबर मिला था, जिसपर इसने काफी बात की हो?" अभय ने विजय की ओर देखते हुए पूछा।
"हाँ सर। मगर वो प्राइवेट नंबर था, इसलिए उसके बारे में कुछ भी पता नहीं चल सका।" विजय ने निराश हो कर कहा।
"उसके बारे में और क्या जानते हो?" रुद्र ने गंभीर स्वर में कहा।
"कुछ नहीं। बस फोन पर ही बात होती थी उनसे।" रघु ने कहा।
"हम्म। अभी हम जा रहे हैं। जरूरत पड़ी तो फिर आएँगे।" रुद्र ने खड़े होते हुए कहा।
रुद्र, अभय और विराज लॉकअप से बाहर निकल आए। रघु अंदर बैठा अभी भी अपनी उँगलियाँ सहला रहा था। विजय ने बाहर आकर दरवाजे पर ताला लगाया।
"अभय, जरा हेडक्वार्टर फोन कर और उन्हें बोल पता करें ये अधिराज है कौन?" रुद्र ने कहा।
अचानक किसी के फोन बजने की आवाज आई। सभी इधर-उधर देखने लगे। अचानक रुद्र का ध्यान अभय की ओर गया और उसने कहा, "अरे! यहाँ-वहाँ क्या देख रहा है? तेरा ही फोन है।"
अभय को भी महसूस हुआ कि फोन उसी की जेब में बज रहा है। अभय ने फोन बाहर निकाला और कहा, "अरे! ये मेरा फोन नहीं है। ये तो उस राणा का फोन लिया था ना? वो है!"
"उसके फोन पे कौन कौन कॉल कर रहा है? इधर दिखा फोन।" रुद्र ने कुछ सोचते हुए अभय से फोन माँगा।
रुद्र ने फोन उठाया और उसके कुछ बोलने के पहले सामने से आवाज आई, "क्या हुआ राणा? क्या खबर है अब तक की?"
"नहीं आर्या, कोई काम नहीं हुआ। हमने पकड़ लिया राणा को।" रुद्र ने बिना किसी भाव से कहा। रुद्र के मुँह से आर्या नाम सुनकर अभय, विराज और विराज हैरान हो कर एक-दूसरे को देख रहे थे।
".....र......रुद्र....." दूसरी ओर से आर्या ने गुस्से से कहा।
"अभी अपने गुस्से को काबू में रख आर्या। अब तक तो मैंने तुझपर ध्यान देना शुरू भी नहीं किया था। लेकिन अब तू तो गया।" रुद्र ने शांत स्वर में कहा।
"तू कुछ नहीं कर सकता रुद्र। जल्द ही, तेरी मौत होगी मेरे हाथों।" आर्य ने कहा और फोन काट दिया।
रुद्र के चेहरे पर ना गुस्सा था, ना डर। अभय और विराज समझ चुके थे कि अभी-अभी क्या हुआ था। इसलिए उन दोनों ने रुद्र से कोई सवाल नहीं पूछा। अभय, रुद्र और विराज जेल बाहर आ गए थे। अचानक फिर से किसी के फोन बजने की आवाज आयी। रुद्र अब थोड़ा चिढ़ गया और उसने कहा, "अब किसका फोन है यार। कल से सभी अपना फोन साइलेंट पे रखेंगे।"
"ओ भाई! इस बार तेरा फोन बज रहा है।" अभय ने रुद्र की जेब की ओर इशारा करते हुए कहा।
रुद्र ने अभय को घूरकर देखा और अपना फोन निकाला। फोन किसी अंजान नंबर से आ रहा था। रुद्र ने फोन उठाया और थोड़ा गुस्से से कहा, "कौन है...?"
"जी मैं शरण्या।" दूसरी ओर से आवाज आयी।
"बोल....बो....बोलिए शरण्या जी। कुछ काम था क्या?" रुद्र ने एकदम कोमलता से जवाब दिया।
रुद्र के भाव बदलते देख विराज हैरान हो गया था। अभय शरण्या का नाम सुनते ही मुस्कुराए जा रहा था। विराज ने अभय की ओर देखा और कहा, "यार इसका गुस्सा इतने जल्दी तो पुरुषोत्तम अंकल या दादा जी के सामने भी शांत नहीं होता। ऐसा कौन है?"
"अरे उसके सामने तो रुद्र को गुस्सा आ ही नहीं सकता। शरण्या, शरण्या नाम है उसका।" अभय ने मुस्कुराते हुए कहा।
"शरण्या कौन है?" विराज ने पूछा।
"तुझे बताया था ना, कल मैं और रुद्र एयरपोर्ट गए थे। अंकल के दोस्त की बेटियाँ हैं, शरण्या और शिवान्या। कुछ दिनों तक रुद्र के ही घर पर रहने वाली हैं।" अभय ने कहा।
"ओह! तभी रुद्र इतना शर्मा रहा है। लड़कियों में मामले में इससे ज्यादा डरपोक कोई नहीं। हा हा हा हा.....।" विराज और अभय दोनों हँसने लगे।
"म.....मैं चलूँ आपके साथ?" रुद्र ने फोन पर थोड़ा हिचकिचाहट के साथ कहा।
अभय और विराज समझने की कोशिश कर रहे थे कि आखिर क्या बात चल रही है फोन पर। विजय भी अब तक वहाँ आ चुका था।
"जी ठीक है शरण्या जी हाँ....हाँ..ब.....बिल्कुल, मैं फ्री हूँ कल।..... ठीक है। बाय।" कहते हुए रुद्र ने फोन काट दिया। रुद्र अभय और विराज के पास आया।
"बड़ी हँसी आ रही है तुम दोनों को?" रुद्र ने उन्हें घूरते हुए कहा।
"न....नहीं। वो ये....ये विजय एक जोक सुना रहा था, बस इसलिए हँस रहे थे हम....क्यों विजय?" अभय ने विजय की ओर देखते हुए कहा।
"मैं?....ह...हाँ हाँ सर।" विजय ने कहा।
"हम्म। सब समझ रहा हूँ।" रुद्र ने अभय, विराज और विजय को घूरते हुए कहा।
"वैसे क्या कहा 'शरण्या जी' ने?" अभय ने शरण्या के नाम पर जोर डालते हुए कहा।
"अरे, वो कल उन्हें सिटी केअर हॉस्पिटल लेकर जाना है। माँ ने कहा था उन्हें की मुझसे पूछ लें कि कल मैं फ्री हूँ, या नहीं।" रुद्र ने कहा।
"हॉस्पिटल? क्यों कोई तकलीफ है क्या?" विराज ने पूछा।
"नहीं, वो शरण्या जी एक डॉक्टर हैं। उन्होंने सिटी केअर हॉस्पिटल से कांटेक्ट किया था और वो कल से हॉस्पिटल जॉइन भी कर लेंगी। बस उन्हें एड्रेस में थोड़ी परेशानी थी। इसलिए कल मैं उन्हें लेकर जाऊँगा सिटी केअर हॉस्पिटल।" रुद्र ने सम्पूर्ण विवरण देते हुए कहा।
"अच्छा। वैसे तो परेशान मत हो। पिछली बार तेरे साथ मैं गया था एयरपोर्ट। कल मैं और विराज दोनों चलेंगे तेरे साथ हॉस्पिटल। तू निश्चिंत रह। क्यों विराज?" अभय ने विराज के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा।
"हाँ हाँ! हम चलेंगे तेरे साथ।" विराज ने कहा।
"कोई जरूरत नहीं है। तुम दोनों वहाँ पर भी मेरे मजे लोगे।.....लेकिन...अकेले भी तो नहीं जा सकता....। हाँ! विजय, तुम कल चल सकते हो मेरे साथ?" रुद्र ने विजय को देखते हुए कहा।
"सर.....वो कल तो मुझे कमिश्नर सर के ऑफिस जाना है। कुछ फाइल्स देने। सॉरी सर।" विजय ने निराश होकर कहा।
"अरे, कोई बात नहीं। अब क्या......अरे हाँ! विकास आ रहा है ना आज शाम को? उसे लेकर जाऊँगा। कम से कम तुम दोनों की तरह टांग तो नहीं खींचेगा मेरी।" रुद्र ने कहा।
"ठीक है। जैसी तेरी मर्जी। मौके टी हमें आगे भी मिल जाएँगे।" अभय ने मुस्कुराते हुए कहा। उसकी बात सुनकर विराज भी हँस पड़ा।
"आज यहीं पड़े रहना है, या चलना भी है?" रुद्र ने दरवाजे की ओर इशारा करते हुए कहा।
"हाँ। चल ना।" अभय ने कहा।
"हम चलते हैं विजय। तुम एक बार किसी डॉक्टर को बुला लो। मुझे लगता वो रघु की एक उँगली टूट गयी। चेक करवा लेना।" कहते हुए रुद्र वहाँ से बाहर निकल गया।
अभय और विराज भी रुद्र के पीछे चल पड़े। बाहर आकर रुद्र आगे वाली सीट पर बैठ गया और चाभी गाड़ी में लगा दी। अभय आकर रुद्र की बगल वाली सीट पर बैठ गया और विराज पीछे। सभी के बैठते ही रुद्र ने गाड़ी स्टार्ट कर दी। तभी अभय का फोन बजा। अभय ने फोन उठाया और कहा, "हाँ हेलो। क्या पता चला अधिराज के बारे में?"
कुछ देर तक अभय सामने वाले की बातें सुनता रहा। अभय का चेहरा देख कर पाता चल रहा था कि कुछ गड़बड़ तो थी।
"लेकिन ऐसा कैसे हो सकता है?....... ठीक है....ओके।" कहते हुए अभय ने फोन काट दिया।
"किसका फोन था अभय?" रुद्र ने गाड़ी चलाते हुए कहा।
"हेडक्वार्टर से फोन था। पुलिस रिकार्ड्स में अधिराज के बारे में कोई जानकारी नहीं है।" अभय ने कहा।
"जिस तरह रघु बात रहा था, मुझे लगता है अधिराज हमारी सोच से कहीं ज्यादा बड़ा है।" विराज ने कहा।
"हाँ। और हमने उसकी ये मानव अंगों की तस्करी बंद करवा दी, लेकिन उसने कोई कदम नहीं उठाया हमारे खिलाफ।" रुद्र ने कुछ सोचते हुए कहा।
"इसका मतलब उसे इस बात से कुछ ज्यादा फर्क नहीं पड़ा है?" अभय ने थोड़ा हैरान होते हुए कहा।
"हाँ। हो सकता है उसके ऐसे या इससे भी बड़े गैर-कानूनी काम चल रहे हों। पता तो लगाना पड़ेगा अब।" रुद्र ने दृढ़ स्वर में कहा।
अभय और विराज ने इसपर कोई जवाब नहीं दिया। वो दोनों भी कुछ सोचने लगे।
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क्या करेगा आर्या रुद्र की धमकी के बदले? कैसे मिलेगी अधिराज के बारे में जानकारी? क्या होगा रुद्र और शरण्या की कहानी का? जानिए अगले भाग में।
अमन मिश्रा
🙏